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PROSTATORRHEA

जब पुरुष लिंग उत्तेजित अवस्था में होता अर्थात् पूर्णत: कठोर हो जाता,

उस समय लिंग में से थोड़ी-सी मात्रा में पानी के रंग की पतली-सी लेस निकलती है। यह लेस इतनी थोड़ी-सी होती है कि बाहर नहीं आती लेकिन जब पुरुष का लिंग उत्तेजित अवस्था में अत्यधिक देर तक रहता
वह संभोग नहीं करता तो यह लेस लिंग के मुंह तक आ जाती है।

इस लेस के अंदर वीर्य का बिल्कुल भी अंश नहीं होता।


इसे प्रकृति ने केवल संभोग के समय लिंग की नली को गीला करने के लिए बनाया ताकि संभोग करते समय वीर्यकी तीव्र गति के कारण लिंग छिल न जाए।

           बहुत से युवक किशोरावस्था से हस्तमैथुन या अन्य विधियोँ द्वारा अपना वीर्य नष्ट करने लगते हैँ या मन ही मन किसी भी लड़की के साथ सेक्स करने की कल्पना में तल्लीन रहते हैं

स्त्री के पास संभोग करने से पूर्व प्यार भरी छेड़छाड़ करते हैं तब उनकी यह लेस बहुत ज्यादा मात्रा में बहने लगती है

और कुछ समय बाद स्थिति यह हो जाती है कि मन में किसी लड़की का विचार आते ही लिंग से यह लेस स्वयं ही अधिक मात्रा में निकलने लगती है

फिर युवक की उत्तेजना बिल्कुल शांत हो जाती है।

इस रोग को हिन्दी में 'शुक्रमेह' अंग्रेजी में 'Prostatorrhea' कहते हैं।